जी हां चौंकिए मत , दरअसल पिछले दो दिनों की कुछ पोस्टों ने , मेरे उन दो प्रिय ब्लॉग शिक्षार्थियों , एक है सुश्री रिया नागपाल और दूसरे हैं मित्र ब्लॉगर और इस बार ही मिले भाई केवल राम , ये दोनों वो लोग हैं जिन्होंने हिंदी ब्लॉगिंग को शोध का विषय बनाया है, उन्हें थोडा सा क्षुब्ध सा कर डाला होगा सो उन्हीं से मुखातिब हूं । अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि इसे ब्लॉगजगत की खुशकिस्मती कहूं कि पिछले दस दिनों में ही हिंदी ब्लॉगिंग पर एक अलग दृष्टिकोण बनाने और स्थापित करने वाले दो लोग अचानक ही रूबरू हुए , या फ़िर ये ब्लॉगजगत की बदकिस्मती कहूं कि दोनों ने ही पिछले दस दिनों में जो पोस्टें , और बहस देखी हैं तो उन्हें कैसा महसूस हुआ होगा । बनिस्पति इसके कि , हिंदी ब्लॉगिंग में इससे भी अधिक , निंदनीय , शर्मनाक , विवादास्पद हो चुका है इनका भी होना अब अनछुआ तो नहीं ही रहेगा ,और जिस तरह की पोस्टें और प्रतिक्रियाएं मैंने पढी देखी तो जरूरी हो गया कि ..एक ब्लॉगर मन को अब छोड दिया जाए कि ..चल कर कुछ ....बेबाक बकबक ॥
इन पोस्टों से , इनमें आई टिप्पणियों से , और उनमें से निकले उदगारों ने निश्चित रूप से ब्लॉग्गिंग और ब्लॉगर्स को सीखने के लिए बहुत कुछ दिया होगा , जिसमें से पहला तो वही है जो इस दुनिया के परे भी चलता है ...यानि इतिहास अपने आपको दोहराता है ..और दोहराता ही जाता है ....यानि आप जो कुछ करेंगे , कहेंगे , सुनेंगे ..वो घूम फ़िर कर आपके सामने ठीक उसी रूप में खडा हो जाता है ..ज्यादा से ज्यादा अप उसे थोडे दिनों के टाल सकते हैं ।एक दूसरी महत्वपूर्ण बात ये कि हिंदी ब्लॉगिंग में जब भी किसी बैठक / सम्मेलन और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा तो यकीनन , उसकी सफ़लता उसकी सार्थकता से ज्यादा रुचि उससे संबंधित कोई विवाद , कोई बवाल आदि पर ही बनेगी । वाह वाह इसे क्या कहा जाए विडंबना मात्र या कि हिंदी ब्लॉगिंग की मासूमियत कि इतना भी परिपक्व नहीं कि अपनी एक किसी छवि को ही बचा सके । एक और बात ये कि , चाहे हिंदी ब्लॉगर्स लाख प्रयास करें मगर अक्सर क्रिकेट मैच के उस एकमात्र कैच को छोड देने की गलती जरूर करते हैं जो बात में हार का सबब बन जाता है ।
मैं अपने दूसरे ब्लॉग पर रविवार के रोहतक ब्लॉगर बैठक की रिपोर्ट करीने से सजाने में लगा था , हालांकि सबका मानना है कि इस तरह के ब्लॉग बैठकों में कुछ नहीं होता किंतु यदि किसी ब्लॉगर से उसके मुंह से ये सुनना कंप्यूटर के संचालन में भूलवश हुई एक गलती ने उन्हें नौकरी खोने पर मजबूर किया और उसके बाद उन्होंने न सिर्फ़ कंप्यूटर सीखा बल्कि एक दिन ब्लॉगिंग में भी आ गए , तो मेरे लिए तो एक ब्लॉगर के मुंह से सुना हुआ उनका ऐसा अनुभव भी मेरे लिए वहां मेरी उपस्थिति को सार्थक कर गया , । तो जैसा कि मैं कह रहा था कि मैं रिपोर्ट सजाने में लगा हुआ था , बावजूद इसके कि कुछ दिनों से लगातार ब्लॉगजगत से जुडे साथियों के लिए मुश्किल समय गुजर रहे होने के कारण मन मेरा बोझिल था , मैं चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी सब तक सारा कुछ पहुंचा दूं , मगर अचानक देखा तो दो पोस्टों पर नज़र गई । दूसरी पोस्ट पहली पोस्ट में इस्तेमाल की गई भाषा , एक विशेष शब्द के प्रयोग और लेखक की मंशा और यहां तक कि उस पर पाठकों द्वारा दी गई टिप्पणियों पर सख्त एतराज़ जताते हुए लिखी गई थी । अब बात इसके आगे की ....
पहली बात तो मैं ये स्पष्ट कर दूं , कि,हालांकि इस बैठक का आयोजक मैं नहीं था इसलिए ये स्पष्टीकरण करने देने का हक सिर्फ़ राज भाटिया जी का ही है ,मगर चूंकि एक ब्लॉगर की हैसियत से मैं भी वहां उपस्थित था इसलिए कम से कम अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं इतना हक तो है ही मुझे । तो सबसे पहली बात उनके लिए जो इस पोस्ट को ब्लॉगर्स बैठक से जोड कर देख रहे हैं या जोडने की कोशिश कर रहे हैं जैसा कि उस पोस्ट की शीर्षक से ही स्पष्ट था ...ब्लॉगर बैठक के बाद .......जी हां ध्यान दीजीए ..के बाद । यानि तब जबकि बैठक खत्म हो चुकी थी और ये बैठक तभी खत्म हो चुकी थी जब हम सब आपसी विमर्श और बातचीत के बाद उठ कर तिलियार बाग के भ्रमण पर निकल गए थे और फ़िर तो पोस्ट में जिस एक बात या रात सुबह का जिक्र था उस वक्त तक तो इतिहास ने तारीख भी बदल ली थी ...। जो लोग इसे ब्लॉग बैठकों में होया किया साबित कर रहे हैं वे जरा फ़िर ये भी बता देते कि ब्लॉग बैठक के बाद भाई समान ब्लॉगर डॉ टी एस दराल जी के यहां उनके पितृशोक पर हमारा जाना भी किस साजिश के तहत किया गया है ...हद है सोचने और कहने वालों की । तो खैर इससे निषकर्ष ये निकलता है ब्लॉगर बैठक के आयोजन करने वाले तमाम उन विचारों को अपना गला ये सोच कर घोंट लेना चाहिए कि यहां दूसरे तो दूसरे उन मित्रों ने भी इसे खाने पिलाने की हैसियत करने वाले किसी भी शख्स की बपौती करार दिया जिन्होंने तो सरकारी खजाने से ही ऐसी या शायद इससे भी उच्च कोटि की मेहमाननवाजी का आनंद हिंदी ब्लॉगर होने की वजह से ही उठाया था , काश कि तब भी सोचा होता कि , बिल तो वहां भी दिया ही गया होगा ...एक की जेब से न सही .....पूरी जनता की जेब से ही सही । अब देखना तो ये है कि ऐसी घटनाएं मेरे जैसे उन और कितने सिरफ़िरे ब्लॉगर को कितने हद तक तोड पाती है कि कभी तो कुछ ऐसा होगा कि ..हम सोच बैठेंकि ..हां ये दुनिया आभासी ही रहे तो ठीक है ...
मैं इस संदर्भ में एक उस बात का जिक्र करना चाहता हूं जो कि संयोग से ही इस बैठक में भाग लेने जाते समय हमारे बीच हुई थी । मुझे पता नहीं कि मैंने किस संदर्भ में ये बात कही थी मगर मैंने कहा था कि , ये बहुत ही जरूरी है कि पोस्ट को जिस भावना और मंतव्य से लिखा गया है उसे पाठक उसी मंतव्य से समझे भी , ये हो सकता है शत प्रतिशत वैसा हो पाना संभव न हो मगर तालमेल तो होना ही चाहिए , अन्यथा बहुत बार पोस्ट में कही गई और उससे समझी गई बातों में गजब का विरोधाभास हो जाता है । एक दूसरी जरूरी बात ये कि कभी कभी सिर्फ़ एक टिप्पणी पूरी पोस्ट की दिशा मोड देती है या कहिए कि भटका देती है उसे उसके उद्देश्य से । अब इसी संदर्भ में पहली पोस्ट आ घेरे में आ गई । हालांकि कुछ भी लिखने पढने सुनने से पहले ये बात ध्यान में रखनी ही होगी कि , क्या सिर्फ़ एक पोस्ट , एक कमेंट , के आधार पर किसी ब्लॉगर की छवि उसके विचार उसके उद्देशय को तय कर देना उचित है , हालांकि मैं किसी की तरफ़ से कोई स्पष्टीकरण नहीं दे रहा क्योंकि समय के अनुकूल प्रतिकूल लिखने पढने की स्वाभाविक जिम्मेदारी के एहसास की अपेक्षा तो यहां हर किसी से ही होती है । तो फ़िर क्या अक्सर उनकी पोस्टों में उनकी टिप्पणियों में उनके विचार , उनका मंतव्य वही होता है जो कि उस पोस्ट के आधार पर बनाया दिखाया समझाया जा रहा है । हां भूल तो हुई है , और इसके जस्टीफ़िकेशन की कोई कोशिश करने का प्रयास भी किए जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि जब ये अंदेशा हो गया था कि पोस्ट को एक गलत दिशा दी जा रही है तो फ़िर उन कारकों (टिप्पणियों) को सिरे से ही मिटा देना चाहिए था और हो सकता तो पोस्ट भी । और उस पोस्ट से बेहतर विकल्प तलाशाना कोई कठिन कार्य नहीं था कम से कम उनके लिए तो जरूर ही ।
अब बात दूसरे पोस्ट की , ये तो बिल्कुल स्वाभाविक ही था कि जिन्होंने महिला अधिकारों पर किसी भी तरह से कभी भी किसी को नहीं बख्शा तो फ़िर कैसे ये मान लिया गया कि इस पोस्ट को वे यूं ही जाने देंगी । हालांकि मैं इस समय ये बात कतई नहीं कहना चाहता था , मगर इतना तो सबको यहां स्पष्ट दिख जाता है कि अपने एक विशेष बागी तेवरों और विचारों के कारण ही जाने अनजाने वे अन्य सभी ब्लॉगर्स से वैचारिक उलझाव में रही जरूर हैं । और ऐसा करते हुए खुद उन्होंने भी कई बार शायद उन मर्यादाओं को पार किया हो जिन्हें अक्सर नैतिकता के पैमाने पर रख कर देखा जाता है , मगर हर बार अपनी लडाई पूरी दृढता से लडी है । मगर लडी ही हैं , कभी कोई मुद्दा या बहस उन्होंने इसके विकल्प से नहीं हासिल किया ..यही उनका मुद्दा है । आखिर क्यों कभी कोई दूसरा ऐसा नहीं दिखता लिखता जो कि अन्य सभी ब्लॉगर्स के समान रूप से निशाने पर आ जाता हो । और तभी तो कहा गया है न कि इतिहास खुद को ही दोहराता है ...मेरे ख्याल से अब ये बात भी गौर करने लायक है कि आखिर हर बार वही क्यों ...और यदि मिल जाए तो फ़िर ...उत्तर तो अगला प्रश्न होना चाहिए कि .....तो फ़िर हर बार यही क्यों (पोस्ट ).....।
मुझे लगता है कि हमें एक दूसरे की इज्जत करना अभी सीखना होगा और यदि ऐसा हम नहीं कर पा रहे हैं तो फ़िर ये बहुत ही जरूरी हो जाता है कि हम आपस में आभासी रिश्ता ही निभाएं ताकि कम से कम ये अपेक्षा और अफ़सोस भी न रहे कि जिनके लिए ऐसा सोचा वो तो वैसे निकले या फ़िर कि ओह इनके लिए क्यों ऐसा सोचा ये तो वैसे न निकले । अब इन सब पिछली कुछ घटनाओं से सीखते हुए मुझे लगता है कि दो निर्णय लेना श्रेयस्कर होगा , पहला ये कि अब तक बनने हुए रिश्तों को ही जबरदस्ती ही सही आभासी जामा पहना दिया जाए और दूसरा ये कि भविष्य की तमाम ऐसी बैठकों , विमर्शों , का आयोजन करने वाले सभी मित्रों को चुन चुन कर ये लिंक्स भेजा करूंगा । फ़िलहाल तो इतना ही ..तो रिया और केवल जी से यही आग्रह है कि ..जब ब्लॉगिंग का इतिहास लिखने का प्रयास करें तो इन मुद्दों पोस्टों पर कोई दृष्टिकोण बनाने से पहले सब कुछ अच्छी तरह से खंगाल लें ।
एक आखिरी बात ये कि मैं इस पोस्ट की हालत देखने के बाद ही तय करूंगा कि ये पोस्ट रहनी चाहिए या नहीं ..क्योंकि कूडा करकट बन गई तो रखने का क्या फ़ायदा .....