ब्लॉग बकबक
ये मेरा वो ब्लॉग है ..जिसे सिर्फ़ बकबक करने के लिए बनाया गया है ...तो झेलिए बकबक ...
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
तारीख पच्चीस दिसंबर 2016...
तारीख पच्चीस दिसंबर 2016, सुबह दस से शाम चार तक मिल रहे हैं हम और आप , ब्लोग्गर मंडली के तमाम हमकदम , करेंगे क्या , एक दशक से कम्प्युटर पर खिटर पिटर कर रहे हैं, अगर सिर्फ दो दो मिनट के लिए भी और दो ही मिनट क्यों ,हम और आप कौन सा इत्ते बड़े सेलिब्रेटी हो गए हैं ( हालांकि मेरी उत्कट इच्छा और मेरा उद्देश्य भी यही है कि हिंदी ब्लोग्गर सेलिब्रिटी हो जाएं ), तो हम जितना मन होगा उतना बोलेंगे सुनेंगे ......कोइ एजेंडा नहीं , कोइ झंडा नहीं | हाँ एक प्रयास जरूर किया जाएगा ब्लॉग जगत के तमाम तकनीकी मित्रों को सहयोग व् उपस्थति के लिए आग्रह किया जाएगा , तकनीक और संसाधनों से लैस होने की भी व्यवस्था हो जाए तो क्या बात |
सोमवार, 6 अगस्त 2012
उलटा सीधा सा इक फ़लसफ़ा
आज एक सहकर्मी ने एक चित्र दिखाया जिस पर शब्दों के जाल को कुछ कमाल की तरह से बुना गया था । जिसे पढकर बरबस ही एक मुस्कान निकल जाती है । मामला एक युगल की नोंक झोंक और चुहल पर आधारित है , इसलिए सिर्फ़ इसलिए ही आपसे बांट रहा हूं ताकि आप भी मुस्कुरा उठें ,देखिए सगाई वाले दिन , दो प्रेमी युगलों के बीत की ये बातचीत :
प्रेमसुख : इस दिन का तो मुझे कब से इंतज़ार था ,
चमेली : अच्छा तो मैं अब जाउं
प्रेमसुख : ना , बिल्कुल ना ।
चमेली : क्या तुम मुझसे प्यार करते हो ?
प्रेमसुख : हां , पहले भी करता था और आगे भी करता रहूंगा
चमेली : क्या तुम कभी मेरे साथ धोखा करोगे ?
प्रेमसुख : ना, इससे अच्छा तो ये होगा कि मैं मर ही जाऊं
चमेली : क्या तुम मुझसे हमेशा यूं ही प्यार करोगे ?
प्रेमसुख : हमेशा
चमेली : क्या तुम मुझे कभी मारोगे ?
प्रेमसुख : ना , मैं ऐसा आदमी नहीं हूं ।
चमेली : क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकती हूं ?
प्रेमसुख : हां
चमेली : ..ओ हो डार्लिंग :)
पढ लिया न , अब सगाई के बाद की स्थिति के लिए इस पूरे वार्तालाप को उलटा यानि नीचे से ऊपर के क्रम में पढिए , माजरा साफ़ हो जाएगा
लेबल:
उलटा सीधा,
नोंकझोंक,
बकबक,
युगल प्रेमी,
हास्य
बुधवार, 23 मई 2012
भारतीय रेल की बुनियादी शर्त "असुरक्षित यात्रा "
अब इस देश में रेल दुर्घटनाओं की बढती संख्या से ऐसा लगने लगा है मानो रेल दुर्घटनाएं भी सडकों पर हो रहे सडक हादसों की तरह है । हाले ही में आंद्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्टेशन पर खडी मालगाडी से हम्पी एक्सप्रेस की जोरदार टक्कर हो गई जिसमें पच्चीस यात्रियों की मृत्यु हो गई । संसद के मौजूदा सत्र में बडे जोर शोर के साथ ये दावा किया गया था कि भारतीय रेल अब यात्रियों की सुरक्षा हेतु करोडों रुपए खर्च करके बहुत से उपाय करने जा रही है ताकि रेल हादसों पर लगाम लगाई जा सके । ताज़ातरीन घटना में रेलवे के चालक द्वारा सिग्नल की अनदेखी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । अलबत्ता सरकार व प्रशासन ने हर बार की तरह दुर्घटना की जांच मुआवजे की घोषणा आदि करके इतिश्री कर ली है ।
यहां सबसे बडा सवाल ये है कि आज जब धन , संसाधन व तकनीक की सारी उपलब्धता है तो आखिर क्या वजह है कि ऐसे हादसे नहीं रोके रुकवाए जा सके हैं । कहीं इसकी एक वजह ये तो नहीं कि इन हादसों में मरने वाले आम लोगों की हैसियत सरकार व प्रशासन की नज़र में कुछ भी नहीं है । इस हादसे से अगले हादसे तक क्या नया किया जाएगा ? हर बार की तरह इस बार भी फ़िर सैकडों सवाल को पीछे छोडते हुए सरकार , प्रशासन , भारतीय रेलवे सब आगे बढ जाएंगे एक नए रेल दुर्घटना के इंतज़ार में ।
दुर्घटना >> कारण>>मुआवजा>>जांच>>बडी बडी घोषणा>>जांच आयोग>>रिपोर्ट>> संस्तुति/अनुशंसा >>>>फ़िर एक और दुर्घटना
शायद सरकार को ये अंदाज़ा नहीं है कि दुर्घटना में सिर्फ़ जीवन ,परिवार , एक नस्ल ही नहीं बल्कि पूरा एक समाज प्रभावित होता है ,जिन्होंने इन दुर्घटनाओं में अपनों को खोया है कभी उन्हें जाकर देखना चाहिए कि किस तरह से किसी के असामयिक चले जाने से पूरा परिवार कैसे टूट और बिखर जाता है । भारतीय रेल विश्व के कुछ चुनिंदा और सबसे बडे परिवहन नेटवर्क में से एक है । अफ़सोस कि इतने वर्षों बाद भी यातायात की बुनियादी शर्त "सुरक्षित यात्रा " को भी नहीं पूरा किया जा सका है ।
सोमवार, 21 मई 2012
मोबाइलियाते रहिए ..लेकिन अईसे हुजूर
ई है हमरा मोबाइल ..नोकिया 5300 |
मेरी हमेशा कोशिश रही है कि मैं , एक सजग नागरिक की तरह अपने आसपास होने वाली सारी गतिविधियों , उठापटक के प्रति कम से कम सचेत तो रहूं ही । हालांकि अपनी इस आदत की वजह से कई बार मुसीबत में भी पडा हूं , लेकिन आखिरकार यही देखा है कि अंत भला तो सब भला और जहां आवाज़ उठाई जाए और पूरे विश्वास के साथ उठाई जाए तो वहां देर सवेर उसकी सुनवाई भी होती है । बेशक कभी कभी अपेक्षित सफ़लता नहीं मिलती किंतु मन में एक संतोष तो रहता ही है कि कम से कम एक प्रयास , एक कोशिश तो की ही गई । जब से मोबाइल और मोबाइल में लगे कैमरे का साथ मिला है जैसे भीतर के नागरिक पत्रकार को एक वजह मिल गई है । अब होता ये है कि जहां भी कुछ गडबड दिखी , हाथ खुद बखुद मोबाइल पर और क्लिक , क्लिक क्लिक ।
ये देखिए ये हाल है , पूर्वी दिल्ली के चंद्र नगर से गीता कॉलोनी की तरफ़ जाने वाले मार्ग का । हालांकि ये तोडफ़ोड इस बार भी किसी न किसी वजह से ही हो रही है , किंतु एक बात आपको बता दूं कि पिछले काफ़ी समय से मैं इस सडक को देख रहा हूं और इसका इस्तेमाल भी करता हूं । कमाल की बात ये है कि इस पर लगातार कोई न कोई काम चलता है और खुदाई , फ़िर और खुदाई और निरंतर खुदाई चलती ही रहती है ।
तो उस दिन भी अचानक जब मैंने फ़िर इसकी खस्ता हालत देखी तो फ़ौरन , क्लिक क्लिक क्लिक । अब ये तमाम चित्र , पूरी खबर के साथ सभी अखबारी मित्रों को प्रेषित कर दिए हैं ताकि मामला संज्ञान में आ सके । तो आप सबसे भी यही निवेदन है कि ..मोबाइलियाइए ..खूब मोबालियाइए .......लेकिन कभी कभी अईसे भी हुजूर ।
ये है चंद्रनगर से सोम बाज़ार की तरफ़ जाने वाली सडक |
शुक्रवार, 18 मई 2012
दुर्बल बाबा की नज़रबंद किरपा
चौपटानंद जी इन दिनों काफ़ी परेशान चल रहे थे और होते भी क्यों नहीं बचपन से लेकर जवानी तक और जवानी से लेकर बडी जवानी तक , बुढापा नहीं , क्योंकि उनका फ़लसफ़ा था कि जब देश की संसद तक साठ साल में पहुंचने पर बूढी नहीं बल्कि परिपक्व और मजबूत कही जा रही है तो फ़िर वे तो अभी पचासे के पेटे में थे , तो इस बडी जवानी तक उन्होंने दूसरों के चौपट होने में ही जीवन का आनंद पाया था । किंतु पिछले कुछ दिनों से अचानक उन्हें लगने लगा था कि उनकी गली , उनका मुहल्ला , शहर , राज्य का पूरा देश यकायक ही सुखी व समृद्ध हो गया है । और इसका पुख्ता कारण भी था उनके पास , अपने गुड , तेल की दुकान पर लगे टीवी पर उपलब्ध सभी चैनलों पर वे देख रहे थे कि एक और तीन आंख वाले दुर्बल बाबा के आगे देश के सारे भक्तगण बाबा की ही तरह सोफ़े पे पसरे फ़ुल्ल किरपा पा पा के निहाल हुए जा रहे थे ।
हालांकि उन्होंने चैक करने के लिए बीच-बीच में कई विदेशी चैनलों पर भी किरपानिधान को तलाशा मगर वे समझ गए कि विश्व के बांकी सब देशों में क्यों महाप्रलय की बात चल रही है क्योंकि वहां किसी दुर्बल बाबा के किरपा की कोई छाया पडी ही नहीं । यहां वे थोडा तो जरूर भन्नाए , चकराए कि जिस देस में बाबा के त्रिनेत्र खुल गए हैं वहां तो मजे में मजा आ रहा है जबकि तीसरा नेत्र खुलने पर तो विनाश ही विनाश होता और जहां बाबे की पहली दूसरी आंख से काम चल रहा है वहां महाप्रलय , जय हो महाप्रभु -सचमुच ही घोर कलजुग आ गया था ।
चौपटानंद जी इसी चिंतन में सूख के हलकान हुए जा रहे थे कि इस रफ़्तार से अगर दुर्बल बाबा की फ़ुल्ल किरपा पूरे देश पर बरसती रही तो गरीबी कैसे बचेगी । और गरीबी नहीं बची तो गरीबी हटाने की योजनाएं कैसे बनेंगी , योजनाएं नहीं बनीं तो फ़िर सरकार कैसे चलेगी , देश कैसे चलेगा ? यानि कुल मिला के बाबा की किरपा के दूरगामी परिणामस्वरूप एक राष्ट्रीय संकट उत्पन्न हो सकता है । चौपटानंद जी की एक समस्या ये भी थी कि दुर्बल बाबा किरपानिधान और किरपा दोनों ,"एट योर डोर" वाली स्कीम के तहत खुद ही प्रोवाइड करा रहे थे । बाब ने किरपा और पिज़्ज़ा का सारा फ़र्क ही मानो मिटा के रख दिया था । द्वारे द्वारे नगरी नगरी प्रकट होकर और टहल टहल कर खुद ही वे किरपा बरसा रहे थे , इस हिसाब से तो ये लोगों की आदत बिगाडने जैसा था , आखिरकार इत्ती फ़ैसिलिटि की आदत कहां है यहां के लोगों को ?
चौपटानंद जी ने तय कर लिया कि अब तो चाहे जो जो वे दुर्बल बाबा के साथ समागम करके ही मानेंगे , लेकिन छि: छि: समागम । लानत है , बाबा को कोई और नाम नहीं सूझा , मगर चलो अब किरपा करवानी है तो समागम ही सही । चौपटानंद जी फ़ुल्ल के लिए फ़ुल्ल तैयारी में जुट गए , फ़ूल , माला , धूप अगरबत्ते , मगर धत्त तेरे कि -किसी ने कहा- नसबंदी का इंतज़ाम करो पहले । नसबंदी - हैं ! चौपटानंद जी उछल गए । इस देश में अगर किरपा कराने के लिए पहले नसबंदी कराने की शर्त है तो फ़िर तो हो गया बेडा गर्क । देश की आबादी ऐसे ही चीन को कंपटीसन थोडी दे रही है , लेकिन फ़िर धत तेरे कि । नसबंदी नहीं - असल में वो दसबंदी क इंतज़ाम करने की बात थी ।
चौपटानंद जी पूरी तैयारी के साथ समागम में किरपा पाने को तैयार हो चुके थे अब । लेकिन ये क्या तत्काल ही सूचना मिली कि बाबा के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज़ हो गया है । अब इस बात के फ़ुल्ल फ़ुल्ल चांस बन गए थे कि बाबा अपने लिए सबसे पहले किरपा तलाश रहे हैं और दसबंद के चक्कर में नज़रबंद तक होने के पूरे पूरे आसार बनते नज़र आ रहे हैं । ओह! चौपटानंद जी सिर थाम कर किसी नए बाबा के अवतरित होने की प्रतीक्षा में लग गए
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
शनिवार, 30 जुलाई 2011
आपको क्या लगता है ...ब्लॉग की बकबक
आपको क्या लगता है ??? |
समाज में जिस तेज़ गति से बढते अपराधों की खबर , पढने , सुनने और देखने को मिल रही है , उससे मैं ठीक ठीक तय नहीं कर पा रहा हूं कि कौन किससे इंस्पायर हो रहा है , खबरों के अपराधप्रेम से अपराध बढ रहे हैं या बढते अपराध के कारण अपराध खबरों का दायरा बढ रहा है ....आपको क्या लगता है ??
जनलोकपाल बिल बनने न बनने जैसा ही जरूरी ये भी है कि आम लोगों में नागरिक संस्कारों को इतना विकसित किया जाए कि कम से सरेआम पिच्च की आदत , लाईन में खडे होने पर खिचपिच की आदत , और महिलाओं , बुजुर्गों , और अक्षम लोगों को बिना मांगे बैठने का स्थान न देने की आदत जैसी बातें बदलने का मन करने लगे , पहले खुद से फ़िर , बच्चों में इसे पैदा किया जा .........आपको क्या लगता है ???
दहेज जैसी प्रथा , और भारतीय शादियों में जबरदस्ती की फ़िज़ूलखर्ची करने की अब तो तेज़ी से फ़लती फ़ूलती परंपरा , को नहीं निभा सकने वाले मां बाप पर किसी पाप जैसा बोझ महसूस करने वालों और कराने वालों में वही एक ही मां बाप होते हैं ....................आपको क्या लगता है ????
आज बताइए कि आपको क्या लगता है ,,रविवार को यही बकबक सही
लेबल:
एक कशमकश,
बकबक,
बकबक ही समझना इसे भी यारों,
बहस,
विमर्श
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