बुधवार, 29 जून 2011

सच्चा मित्र ....बस परिभाषा , जी जी, डेफ़िनेशन ही समझा जाए





आप लोगों ने सच्चे मित्रों के कई किस्से और अफ़साने पढे होंगे लेकिन ये तो समझिए कि आंखों देखी घटना जैसा ही है कुछ , देखिए अब इससे पहले कि इस बात पर शक करें तो मैं बता दूं कि आखिर पढा लिखा भी तो आंखों से ही जाता है न , तो गोया बात ये कि सच्चे मित्र और उनकी सच्चाई की बानगी जरा इस घटना से देखिए ।

एक दिन सुबह तडके चार बजे , लघुशंका को उठे डैडी जी ने अपने इंजिनियरिंग की घनघोर तैयारी में लीन पुत्र को चोर कट में दबे पाव घर में घुसते देख लिया । बस चूंकि वे भी टीवी खूब देखते थे इसलिए बिना समय गंवाए पूछा , " कहां थे इतनी देर तक , किसके साथ थे और ऐसा कहते हुए डैडी जी ने पुत्तर जी के हाथ से उसका मोबाईल ले लिया । " पुत्तर जी ने फ़ौरन कहा , " पापा जी वो मैं एक फ़्रैंड के घर था , वो कुछ नोट्स शेयर करने थे , कल उसने निकल जाना है कोचिंग के लिए जयपुर "
डैडी जी इतना सुन कर बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए । पुत्तर जी अपने कमरे जा पडे ।

डैडी जी ने फ़ोन लिस्ट में शुरू के दस मित्रों को अपने मोबाईल से  फ़ोन मिलाया , तो उत्तर कुछ यूं प्राप्त हुए

पहले तीन : रोहन , हां अंकल मेरे ही साथ था 

अगले तीन : सोया हुआ है अंकल , देर रात तक हम पढते रहे थे न 

अगले तीन : जी नहीं अंकल , सर बैठे हैं फ़ोन दूसरे कमरे में है , वो तो मैं इधर आया था इसलिए देख लिया , क्लास खत्म होते ही बात करवाता हूं न 

सबसे आखिरी वाला :-जी पापा , नहीं पापा मैं तो पढ रहा था , जी पापा इसीलिए आवाज़ ऐसी भारी सी लग रही है । 
डेडी , ने अगली काल की ही नहीं , समझ गए थे कि बेटा कितने सच्चे और हीरा दोस्तों की संगत में है । 

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