शनिवार, 30 जुलाई 2011

आपको क्या लगता है ...ब्लॉग की बकबक

आपको क्या लगता है ???


समाज में जिस तेज़ गति से बढते अपराधों की खबर , पढने , सुनने और देखने को मिल रही है , उससे मैं ठीक ठीक तय नहीं कर पा रहा हूं कि कौन किससे इंस्पायर हो रहा है , खबरों के अपराधप्रेम से अपराध बढ रहे हैं या बढते अपराध के कारण अपराध खबरों का दायरा बढ रहा है ....आपको क्या लगता है ??


जनलोकपाल बिल बनने न बनने जैसा ही जरूरी ये भी है कि आम लोगों में नागरिक संस्कारों को इतना विकसित किया जाए कि कम से सरेआम पिच्च की आदत , लाईन में खडे होने पर खिचपिच की आदत , और महिलाओं , बुजुर्गों , और अक्षम लोगों को बिना मांगे बैठने का स्थान न देने की आदत जैसी बातें बदलने का मन करने लगे , पहले खुद से फ़िर , बच्चों में इसे पैदा किया जा .........आपको क्या लगता है ???


दहेज जैसी प्रथा , और भारतीय शादियों में जबरदस्ती की फ़िज़ूलखर्ची करने की अब तो तेज़ी से फ़लती फ़ूलती परंपरा , को नहीं निभा सकने वाले मां बाप पर किसी पाप जैसा बोझ महसूस करने वालों और कराने वालों में वही एक ही मां बाप होते हैं ....................आपको क्या लगता है ????

आज बताइए कि आपको क्या लगता है ,,रविवार को यही बकबक सही 

शनिवार, 2 जुलाई 2011

एक अजीब कशमकश है यार .... अब है तो है



ई मंदिर बिरादती के बिल गेट्स हैं  . जी जी तिरूपति बाला जी .की.जय हो 




जिस तरह से मंदिरों के गर्भगृहों से अकूत धन दौलत और संपदा निकल रही है उसने मेरे इस विश्वास को और भी पुख्ता किया है कि , आज देश की बदहाली और पिछडेपन में जिन आपराधिक आर्थिक कारणों का हाथ रहा है उनमें से एक ये भी है । इसका मतलब कि हम लोग वो बेवकूफ़ हैं जो पैसे के ढेर पर बैठ कर भूख से मर जाता है , न भगवान जागने को तैयार है न इंसान , अजीब कशमकश है यार 

बुधवार, 29 जून 2011

सच्चा मित्र ....बस परिभाषा , जी जी, डेफ़िनेशन ही समझा जाए





आप लोगों ने सच्चे मित्रों के कई किस्से और अफ़साने पढे होंगे लेकिन ये तो समझिए कि आंखों देखी घटना जैसा ही है कुछ , देखिए अब इससे पहले कि इस बात पर शक करें तो मैं बता दूं कि आखिर पढा लिखा भी तो आंखों से ही जाता है न , तो गोया बात ये कि सच्चे मित्र और उनकी सच्चाई की बानगी जरा इस घटना से देखिए ।

एक दिन सुबह तडके चार बजे , लघुशंका को उठे डैडी जी ने अपने इंजिनियरिंग की घनघोर तैयारी में लीन पुत्र को चोर कट में दबे पाव घर में घुसते देख लिया । बस चूंकि वे भी टीवी खूब देखते थे इसलिए बिना समय गंवाए पूछा , " कहां थे इतनी देर तक , किसके साथ थे और ऐसा कहते हुए डैडी जी ने पुत्तर जी के हाथ से उसका मोबाईल ले लिया । " पुत्तर जी ने फ़ौरन कहा , " पापा जी वो मैं एक फ़्रैंड के घर था , वो कुछ नोट्स शेयर करने थे , कल उसने निकल जाना है कोचिंग के लिए जयपुर "
डैडी जी इतना सुन कर बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए । पुत्तर जी अपने कमरे जा पडे ।

डैडी जी ने फ़ोन लिस्ट में शुरू के दस मित्रों को अपने मोबाईल से  फ़ोन मिलाया , तो उत्तर कुछ यूं प्राप्त हुए

पहले तीन : रोहन , हां अंकल मेरे ही साथ था 

अगले तीन : सोया हुआ है अंकल , देर रात तक हम पढते रहे थे न 

अगले तीन : जी नहीं अंकल , सर बैठे हैं फ़ोन दूसरे कमरे में है , वो तो मैं इधर आया था इसलिए देख लिया , क्लास खत्म होते ही बात करवाता हूं न 

सबसे आखिरी वाला :-जी पापा , नहीं पापा मैं तो पढ रहा था , जी पापा इसीलिए आवाज़ ऐसी भारी सी लग रही है । 
डेडी , ने अगली काल की ही नहीं , समझ गए थे कि बेटा कितने सच्चे और हीरा दोस्तों की संगत में है । 

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

आज यही सही ....






































कभी कभी कलम शब्द नहीं उकेरते कुछ और ही उकेर जाते हैं , मेरे साथ ऐसा बहुत कम होता है और अब तो न के बराबर ......तो आज यही सही

रविवार, 27 मार्च 2011

टिप्पणियों को टिकाइए जी .......इन्हें अलग से पाईए जी ...झा जी की बकबक




सिर्फ़ पोस्ट पर ही नहीं टिप्पणियों के लिए भी चले उंगलियां

हिंदी में जितना लेखन किया जा रहा है ..मतलब कि पोस्ट लेखन ..ऐसा हो सकता है कि उससे कहीं अधिक पठन किया जा रहा हो ..मगर यकीनन यहां बाहर से आए कई पाठकों को कई बहुत ही बेहतरीन पोस्टों पर पहुंचने पर जब एक भी टिप्पणी नहीं दिखाई देती तो वो ठिठक कर ये जरूर सोचता होगा कि आखिर इतने छोटे से हिंदी ब्लॉग जगत में भी जब ऐसी पोस्टों पर टिप्पणी नहीं है तो फ़िर इनके पाठक कहां हैं ? क्या ऐसी कुछ किया जा सकता है कि इन टिप्पणियों को ही एक जगह पर सहेजा जा सके ताकि उससे न सिर्फ़ उस पोस्ट बल्कि टिप्पणी का भी एक अलग वजूद बन जाए और शायद ऐसा करके बहुत से साथी ब्लॉगर्स को टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया जा सके ।


आज रविवार को यही बातें तब मेरे दिमाग में घूमती रहीं जब मैं पोस्टों को पढने के क्रम में इधर उधर टहल रहा था । मुझे लगता है कि हम इसलिए लिखते हैं क्योंकि अपने विचार बांट सकें और एक पोस्ट लेखक को यदि उस पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं मिलेगी तो न सिर्फ़ उस पोस्ट पर पहुंचने से ऐसा लगेगा जैसे आप किसी दीवार पर पहुंचे और वहां चस्पाई गई चीज़ पढ कर चुपचाप निकल गए हों । हां मैं मानता हूं कि न तो पोस्टें टिप्पणियों के लिए लिखी जाती हैं न ही हर पोस्ट पर प्रतिक्रिया की ही जाए ये जरूरी है , और इसके बावजूद कि शायद पोस्ट लेखक को उस लेख पर कोई प्रतिक्रिया अपेक्षित नहीं है ( हालांकि मुझे अब तक ऐसा कोई अपवाद मिला नहीं है , नहीं मैं नहीं मानता कि जिन्होंने टिप्पणी बक्सों को ताला लगा रखा है उन्हें किसी प्रतिक्रिया की दरकार नहीं है ) , लेकिब बाद में और बहुत बाद में आए पाठकों के मन बिना टिप्पणी वाली पोस्टों पर एक कौतूहल ये बना ही रह जाता है कि , आखिर इस पोस्ट को पढके क्या सोचा गया होगा । या शायद किसी ने इस पोस्ट को पढा ही नहीं ।


मैं ये सोच रहा हूं कि क्या ये संभव है कि हिंदी ब्लॉग पोस्टों पर की जा रही टिप्पणियों को एक मंच पर सहेज के रखा जा सके । विशुद्ध रूप से टिप्पणियों का एग्रीगेटर । हां मैं जानता हूं आप सोच रहे होंगे कि एक तो पहले से ही पोस्टों के लिए एक एग्रीगेटर के लाले पडे हुए हैं ऊपर से मैं टिप्पणियों के लिए एक अलग एग्रीगेटर की बात घुसेड रहा हूं । जी घुसेड ही नहीं दी है बल्कि ब्लॉगिंग महामानव ......ब्लॉग जिन्न ..श्री श्री बी एस पाबला जी के  इस नायाब मंच ..ब्लॉग मंच पर प्रश्न उछाल चुका हूं ...और इसका हल न निकले ..ऐसा हो ही नहीं सकता । ये तो बस बकबक थी जी ..क्या पता आगे आपके कौन सी काम आ जाए .....नहीं तो हम तो झाजी हैं ही ..बकबक वाले


बस आप लोग भी अब शुरू हो जाईये ..लीजीए ..एग्रीगेटर के लिए टिप्पणियां ही तो चाहिए न जी ..आयं