शुक्रवार, 18 मई 2012

दुर्बल बाबा की नज़रबंद किरपा







चौपटानंद जी इन दिनों काफ़ी परेशान चल रहे थे और होते भी क्यों नहीं बचपन से लेकर जवानी तक और जवानी से लेकर बडी जवानी तक , बुढापा नहीं , क्योंकि उनका फ़लसफ़ा था कि जब देश की संसद तक साठ साल में पहुंचने पर बूढी नहीं बल्कि परिपक्व और मजबूत कही जा रही है तो फ़िर वे तो अभी पचासे के पेटे में थे , तो इस बडी  जवानी तक उन्होंने दूसरों के चौपट होने में ही जीवन का आनंद पाया था । किंतु पिछले कुछ दिनों से अचानक उन्हें लगने लगा था कि उनकी गली , उनका मुहल्ला , शहर , राज्य का पूरा देश यकायक ही सुखी व समृद्ध हो गया है । और इसका पुख्ता कारण भी था उनके पास , अपने गुड , तेल की दुकान पर लगे टीवी पर उपलब्ध सभी चैनलों पर वे देख रहे थे कि एक और तीन आंख वाले दुर्बल बाबा के आगे देश के सारे भक्तगण बाबा की ही तरह सोफ़े पे पसरे फ़ुल्ल किरपा पा पा के निहाल हुए जा रहे थे ।  

हालांकि उन्होंने चैक करने के लिए बीच-बीच में कई विदेशी चैनलों पर भी किरपानिधान को तलाशा मगर वे समझ गए कि विश्व के बांकी सब देशों में क्यों महाप्रलय की बात चल रही है क्योंकि वहां किसी दुर्बल बाबा के किरपा की कोई छाया पडी ही नहीं । यहां वे थोडा तो जरूर भन्नाए , चकराए कि जिस देस में बाबा के त्रिनेत्र खुल गए हैं वहां तो मजे में मजा आ रहा है जबकि तीसरा नेत्र खुलने पर तो विनाश ही विनाश होता और जहां बाबे की पहली दूसरी आंख से काम चल रहा है वहां महाप्रलय , जय हो महाप्रभु -सचमुच ही घोर कलजुग आ गया था ।


चौपटानंद जी इसी चिंतन में सूख के हलकान हुए जा रहे थे कि इस रफ़्तार से अगर दुर्बल बाबा की फ़ुल्ल किरपा पूरे देश पर बरसती रही तो गरीबी कैसे बचेगी । और गरीबी नहीं बची तो गरीबी हटाने की योजनाएं कैसे बनेंगी , योजनाएं नहीं बनीं तो फ़िर सरकार कैसे चलेगी , देश कैसे चलेगा ? यानि कुल मिला के बाबा की किरपा के दूरगामी परिणामस्वरूप एक राष्ट्रीय संकट उत्पन्न हो सकता है । चौपटानंद जी की एक समस्या ये भी थी कि दुर्बल बाबा किरपानिधान और किरपा दोनों ,"एट योर डोर" वाली स्कीम के तहत खुद ही प्रोवाइड करा रहे थे । बाब ने किरपा और पिज़्ज़ा का सारा फ़र्क ही मानो मिटा के रख दिया था । द्वारे द्वारे नगरी नगरी प्रकट होकर और टहल टहल कर खुद ही  वे किरपा बरसा रहे थे , इस हिसाब से तो ये लोगों की आदत बिगाडने जैसा था , आखिरकार इत्ती फ़ैसिलिटि की आदत कहां है यहां के लोगों को ?


चौपटानंद जी ने तय कर लिया कि अब तो चाहे जो जो वे दुर्बल बाबा के साथ समागम करके ही मानेंगे , लेकिन छि: छि: समागम । लानत है , बाबा को कोई और नाम नहीं सूझा , मगर चलो अब किरपा करवानी है तो समागम ही सही । चौपटानंद जी फ़ुल्ल के लिए फ़ुल्ल तैयारी में जुट गए , फ़ूल , माला , धूप अगरबत्ते , मगर धत्त तेरे कि -किसी ने कहा- नसबंदी का इंतज़ाम करो पहले । नसबंदी - हैं ! चौपटानंद जी उछल गए । इस देश में अगर किरपा कराने के लिए पहले नसबंदी कराने की शर्त है तो फ़िर तो हो गया बेडा गर्क । देश की आबादी ऐसे ही चीन को कंपटीसन थोडी दे रही है , लेकिन फ़िर धत तेरे कि । नसबंदी नहीं - असल में वो दसबंदी क इंतज़ाम करने की बात थी ।



चौपटानंद जी पूरी तैयारी के साथ समागम में किरपा पाने को तैयार हो चुके थे अब । लेकिन ये क्या तत्काल ही सूचना मिली कि बाबा के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज़ हो गया है । अब इस बात के फ़ुल्ल फ़ुल्ल चांस बन गए थे कि बाबा अपने लिए सबसे पहले किरपा तलाश रहे हैं और दसबंद के चक्कर में नज़रबंद तक होने के पूरे पूरे आसार बनते नज़र आ रहे हैं । ओह! चौपटानंद जी सिर थाम कर किसी नए बाबा के अवतरित होने की प्रतीक्षा में लग गए

1 टिप्पणी: